किया आपने सुना है कि अफगानिस्तान में एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम नदी का निर्माण हो रहा है? क्या आप जानते हैं कि यह प्रोजेक्ट कैसे शुरू हुआ, कैसे चल रहा है, और क्या इसका क्या लाभ होगा? तो चालिए जानते है इसके बारे में।
अफगानिस्तान एक ऐसा देश जो कि पिछले कई दशकों से संघर्ष और युद्ध से जूझ रहा था। लेकिन अब अफगानिस्तान एक नई उम्मीद और उत्साह से भरा हुआ देश है। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने इस नहर को एक प्राथमिक परियोजना बना दिया है, इस लिए यह देश अब एशिया की सबसे बड़ी कुत्रिम नदी का निर्माण कर रहा है जो कि क़ोश टेपा नहर के नाम से जानी जाती है।यह नहर अफगानिस्तान को निजी क्षमता और गौरव का प्रतीक बनाती है।
इस प्रोजेक्ट से अफगानिस्तान के कई इलाकों में परिवर्तन होगा। जहाँ पहले रेगिस्तान और बंजर जमीन थी, अब वहाँ गेहूं, जौ और कई फसल उगाई जाएगी। यह नहर अमू नदी से पानी को अलग करके रेगिस्तान के इलाके में ले जाएगी और वहाँ की जमीन को फर्टाइल बना देगी इस कैनाल की कुल लंबाई 285 किलोमीटर है, चौड़ाई 100 मीटर है और गहराई 8 मीटर है और यह नहर अफगानिस्तान की 550,000 हेक्टेयर रेगिस्तान को कृषि भूमि में बदलने का लक्ष्य रखती है।
इस प्रोजेक्ट की खास बात यह है, कि इस नहर को बनाने के लिए अफगान सरकार ने किसी से कोई ऐड, कोई इक्विपमेंट या कोई इंजीनियर नहीं लिए। इस प्रोजेक्ट का कुल खर्चा 600 मिलियन डॉलर है, जो अफगानिस्तान सरकार द्वारा दिया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट का मैनेजमेन्ट अफगान राष्ट्रीय विकास निगम द्वारा किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट का मकसद अफगानिस्तान की जल समस्या को हल करना और कृषि को बढ़ावा देना है।
इस परियोजना से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता में सुधार होगा। इस कैनाल का पानी अमू दरिया नदी से लाया जाएगा। अमू नदी अफगानिस्तान के उत्तरी सीमा पर बहती है, और इससे उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को भी पानी मिलता है।प्लैनेट लैब्स द्वारा प्रदान की गई तस्वीरों से पता चला है कि अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 तक इस नहर की 100 किमी से अधिक खुदाई की गई थी। इस परियोजना का पहला चरण अक्टूबर 2023 में पूरा हो गया है और दूसरा चरण तुरंत ही शुरू कर दिया गया था।
अभी तक इसका 60% काम हो चुका है। इस प्रोजेक्ट को तीन चरणों में पूरा किया जा रहा है। पहला चरण है खुदाई जिसमें नहर का रास्ता बनाया जाता है। दूसरा चरण है वॉटर्स सिस्टम का स्थापना, जिसमें नहर में पानी को चलाने और रोकने के लिए बंद नाले और पाइप लगाए जाते हैं। तीसरा चरण है इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास, जिसमें नहर के किनारे सड़क, पुल, बिजली और अन्य सुविधाएं बनाई जाती है। इस प्रोजेक्ट में 10,000 लोग काम कर रहे हैं।
इससे अफगानिस्तान की खाद्य सुरक्षा और आय बढ़ेगी। इस प्रोजेक्ट से 10 लाख लोगों को लाभ होगा। जो नहर के किनारे रहेंगे या नहर से पानी लेंगे। इससे उनकी लाइफ स्टाइल में सुधार होगा और उन्हें रोजगार और आजीविका का अवसर मिलेगी।
अफगानिस्तान की परियोजना में आने वाली मुश्किलें।
स्वतंत्र विशेषज्ञों और इंजीनियरों ने परियोजना के बारे में संदेह और चिंता व्यक्त की है, जिसमें कहा गया है कि अफगान सरकार के पास नहर को प्रभावी ढंग से पूरा करने की जानकारी नहीं है। विशेष रूप से, उन्होंने नोट किया है कि “प्रारंभिक” निर्माण विधियों को नियोजित करने में निरीक्षण की कमी है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
सोवियत काल के दौरान किर्गिस्तान , ताजिकिस्तान , तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के चार पूर्व- यूएसएसआर गणराज्यों के बीच अमू के पानी को विभाजित करने के लिए एक औपचारिक शासन बनाया गया था। यूएसएसआर के विभाजन होने के कारण, ये समझौते अफगानिस्तान के हितों को प्रतिबिंबित नहीं करते थे। जब 2022 में नहर का निर्माण शुरू हुआ, तब भी अफगानिस्तान सीमा पार नदी जल के उपयोग पर किसी भी क्षेत्रीय या अंतर्राष्ट्रीय संधि का पक्ष नहीं था।
इस प्रकार, अन्य अमू नदी बेसिन देशों की चिंताओं को दूर करने के लिए कोई पूर्व-व्यवस्थित विवाद समाधान प्रक्रिया मौजूद नहीं थी। अफगान सरकार ने तर्क दिया कि औपचारिक समझौते के बावजूद, अफगानिस्तान को अमू नदी के पानी का उपयोग करने का सामान्य अधिकार है। अमु नदी के तटीय देश उज्बेकिस्तान ने चिंता व्यक्त की है कि नहर का उसकी कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 2023 में उज़्बेक अधिकारियों ने इस मामले पर तालिबान के साथ बातचीत की, हालांकि कोई आधिकारिक समझौता नहीं हुआ।
पर्यावरणीय चिंता
पर्यावरण विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि कोश टेपा नहर अमू नदी से और भी अधिक पानी मोड़कर अरल सागर की स्थिति को और खराब कर देगी। इस परियोजना के विस्तृत विश्लेषण में पाया गया कि नियोजित निर्माण विधियां “अल्पविकसित” दिखाई दीं और निष्कर्ष निकाला कि नहर में पानी के नुकसान की संभावना अधिक है।